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स्व॒यं वा॑जिँस्त॒न्वं᳖ कल्पयस्व स्व॒यं य॑जस्व स्व॒यं जु॑षस्व। म॒हि॒मा ते॒ऽन्येन॒ न स॒न्नशे॑ ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्व॒यम्। वा॒जि॒न्। त॒न्व᳖म्। क॒ल्प॒य॒स्व॒। स्व॒यम्। य॒ज॒स्व॒। स्व॒यम्। जु॒ष॒स्व॒। म॒हि॒मा। ते॒। अ॒न्येन॑। न। स॒न्नश॒ इति॑ स॒म्ऽनशे॑ ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पढ़ने वा उत्तम विद्या-बोध चाहनेवाले कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजिन्) बोध चाहनेवाले जन ! तू (स्वयम्) आप (तन्वम्) अपने शरीर को (कल्पयस्व) समर्थ कर (स्वयम्) आप अच्छे विद्वानों को (यजस्व) मिल और (स्वयम्) आप उनकी (जुषस्व) सेवा कर, जिससे (ते) तेरी (महिमा) बड़ाई तेरा प्रताप (अन्येन) और के साथ (न) मत (सन्नशे) नष्ट हो ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे अग्नि आप से आप प्रकाशित होता, आप मिलता तथा आप सेवा को प्राप्त है, वैसे जो बोध चाहनेवाले जन आप पुरुषार्थयुक्त होते हैं, उनका प्रताप, बड़ाई कभी नहीं नष्ट होती ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ जिज्ञासवः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

(स्वयम्) (वाजिन्) जिज्ञासो (तन्वम्) शरीरम् (कल्पयस्व) समर्थयस्व (स्वयम्) (यजस्व) सङ्गच्छस्व (स्वयम्) (जुषस्व) सेवस्व (महिमा) प्रतापः (ते) तव (अन्येन) (न) (सन्नशे) सम्यक्नश्येत्॥ ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वाजिंस्त्वं तन्वं कल्पयस्व स्वयं विदुषो यजस्व स्वयं जुषस्व च। यतस्ते महिमाऽन्येन सह न संनशे ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - यथाग्निः स्वयं प्रकाशः स्वयं सङ्गतः स्वयं सेवमानोऽस्ति, तथा ये जिज्ञासवः स्वयं पुरुषार्थयुक्ता भवन्ति, तेषां महिमा कदाचिन्न नश्यति ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसा अग्नी स्वयंप्रकाशित असतो व सर्वांच्या सेवेत उपलब्ध असतो. तसे जे जिज्ञासू लोक विद्वानांकडून बोध करून घेऊ इच्छितात ते स्वतः पुरुषार्थी असतात. त्यांचा पराक्रम आणि मोठेपणा कधी नष्ट होत नाही.